Saturday, April 5, 2008

वो पूछते हैं

वो पूछते हैं कि क्या देखा है मैने तुम में,
सुकून जो चाहा था, देखा है मैने तुम में ।
तुम्हारा गम मुझे मेरे गम जैसा लगता है,
कि एक हमदर्द सा देखा है मैने तुम में ।
मैं तुम से ये नही कहूंगा, कि मैं तुम पे मरता हूं,
एक सबब जीने का, देखा है मैने तुम में ।
मैं नही जानता ले जाऊंगा कहां तक इनको,
ख्वाब ता-उम्र का, देखा है मैने तुम में ।
किसी दिन और मिल के सोचेंगे, तुम क्या हो मेरे,
एक बेनाम, हमारा, देखा है मैने तुम में ।
तुम्हारी याद मुझे रखती है गुनाहों से परे,
खुदा के राज सा देखा है मैने तुम में ।
ये डर लगा ही रेहता है, कि सब बिखर न जाए,
अपने खुदी पर का यकीन देखा है मैने तुम में ।
इस से ज्यादा मै और क्या देख सकता था,
कि एक खलील सा देखा है मैने तुम में

- खलील सावंत

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